हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/साहित्येतिहास एवं इतिहास दर्शन
साहित्येतिहास हो या किसी देश या समाज का इतिहास, केवल तथ्यों से नहीं बनता बल्कि उसमें तथ्यों से अधिक महत्व व्याख्याओं का होता है। इतिहासकार एडवर्ड हॉलेट कार ने अपनी पुस्तक 'इतिहास क्या है' में इस संबंध में माना है कि कोई भी इतिहासकार अपने इतिहासबोध के आधार पर ही तथ्यों का चयन और विवेचन करता है। दार्शनिक मिशेल फूको ने इतिहासकार के दृष्टिकोण के अत्यधिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इतिहास की वस्तुनिष्ठता पर प्रश्नचिह्न लगाया है।
- इतिहासबोध
इतिहासबोध का अर्थ है कि कोई इतिहासकार इतिहास के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है? उसकी दृष्टि में इतिहास का निर्माण किन तत्वों से होता है और उन तत्वों की आनुपातिक भूमिका क्या है? ये सभी धारणाएँ उसके इतिहासबोध को रूपायित करती हैं। जैसे, हीगेल का दावा है कि 'इतिहास चेतना के अंतर्द्वंद्वों से निर्मित होता है' जबकि मार्क्स का मानना है कि 'इतिहास उत्पादन प्रणाली में निहित उत्पादन की शक्तियों तथा उत्पादन के संबंधों से निर्धारित होता है।' सबाल्टर्न अध्ययन इतिहास को मुख्य धारा से बहिष्कृत जनसमूह की दृष्टि से देखने की माँग करता है, तो पारंपरिक आभिजात्यवादी दृष्टिकोण कुछ उच्चवर्गीय व्यक्तियों को इतिहास का केंद्र बिंदु मानता है। इससे स्पष्ट है कि किसी भी इतिहासकार द्वारा इतिहास के लेखन में यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है कि उसका इतिहास के प्रति दृष्टिकोण क्या है?
- इतिहास दर्शन
निम्नलिखित प्रमुख दृष्टिकोणों के आधार पर इतिहास लेखन का प्रयास किया गया है:
- प्रत्यक्षवादी या विधेयवादी इतिहास दृष्टि
- समाजशास्त्रीय इतिहास दृष्टि
- परंपरावादी इतिहास दृष्टि
- वैज्ञानिक इतिहास दृष्टि
- मार्क्सवादी इतिहास दृष्टि
- स्त्रीवादी इतिहास दृष्टि
- दलितवादी इतिहास दृष्टि
- सबाल्टर्न इतिहास दृष्टि
उपर्युक्त इतिहास दर्शनों के आलोक में हिंदी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा का अध्ययन अगले अध्यायों में किया जाएगा।