रचनात्मक लेखन व्यावहारिक कार्य/3417
यह व्यावहारिक कार्य क्रमांक 3417 द्वारा निर्मित किया गया है।
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[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]कंपनी का नाम- रुह आर्ट
साहित्यिक लेखन
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]यात्रा वृतान्त- दिल्ली से जौनपुर
दिल्ली से जौनपुर की यात्रा पर निकलते हुए मैं अपने आप को उत्साह और उत्सुकता से भरा महसूस कर रही थी। मेरी दीदी की शादी का उत्सव, परिवार से मिलने का अवसर, और उस खुशी में शामिल होने का सपना मेरे दिल को रोमांचित कर रहा था। परन्तु किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था, क्योंकि ठीक इस वक्त मेरी तबीयत खराब हो गई। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से चली, मुझे हल्का बुखार और बदन में कमजोरी महसूस होने लगी। उस समय मुझे अहसास हुआ कि आगे की यात्रा शायद मेरे लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
यात्रा की शुरुआत: ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली से प्रस्थान किया, मैंने अपनी सीट पर बैठते ही आराम करने की कोशिश की। मेरे साथ बैठा एक बुजुर्ग व्यक्ति, जिनका नाम मिश्रा जी था, पहले तो चुपचाप बैठकर अपने बैग से किताब निकालकर पढ़ने लगे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं लगातार खिड़की के बाहर देख रही हूँ और चुपचाप बैठी हूँ, तो उन्होंने मुझसे हल्की-फुल्की बातचीत शुरू कर दी। उनकी बातें सुनते ही मुझे कुछ राहत मिली, पर जल्द ही मुझे महसूस हुआ कि मेरी तबीयत बिगड़ रही है। बुखार के साथ-साथ सिरदर्द भी बढ़ गया था और मैं काफी असहज महसूस कर रही थी।
अजनबियों का सहारा: मेरे साथ वाली सीट पर बैठी एक युवा महिला, जो शायद मेरी ही उम्र की थी, उसने मेरी हालत देखी और मुझे पानी की बोतल थमाते हुए पूछा, "आप ठीक हैं ना?" उसकी आवाज़ में अपनापन और चिंता साफ झलक रही थी। मैंने उसे बताया कि मुझे बुखार महसूस हो रहा है और कमजोरी भी। उसने तुरंत ही अपने बैग से एक छोटा सा थर्मामीटर निकालकर मेरा तापमान नापा। जैसे ही उसने देखा कि तापमान अधिक है, उसने अपने बैग से कुछ दवाइयाँ निकालकर मुझे दीं और समझाया कि यह हल्की बुखार के लिए है। मैंने उसे धन्यवाद दिया और उसकी सहायता को सराहा।
ख्याल रखने वाले लोग: जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, मेरी तबीयत में हल्का सुधार हुआ, पर कमजोरी अब भी थी। इस बीच मेरे सामने वाली सीट पर बैठे एक युवा व्यक्ति, जिनका नाम रोहित था, ने भी मुझसे बातचीत शुरू की। उन्होंने मुझे अपने बैग से कुछ फल निकालकर दिए और कहा, "इसे खा लीजिए, इससे आपकी तबीयत बेहतर महसूस होगी।" उनके इस छोटे से मदद ने मेरे दिल को छू लिया। इस तरह के अनजान सहयात्रियों का एक-दूसरे का ख्याल रखना वास्तव में एक अद्भुत अनुभव था।
रास्ते का खूबसूरत नजारा: इस दौरान ट्रेन खिड़की से बाहर देखने का भी मुझे मौका मिला। बाहरी नज़ारे बेहद सुन्दर थे। घने पेड़, नदी के किनारे, छोटे गाँव, हरियाली से भरे खेत, ये सभी चीजें मेरे मन को शांति दे रही थीं। कभी-कभी प्राकृतिक नजारे भी हमें जीवन के संघर्षों में सहारा देते हैं। उस समय मुझे अहसास हुआ कि यह यात्रा न केवल मेरे लिए बल्कि मेरे आसपास बैठे सभी सहयात्रियों के लिए भी खास थी। उनकी सहायता और अपनापन मेरे दिल को सुकून दे रहे थे।
यात्रा का अंत: जब हम जौनपुर स्टेशन के करीब पहुंचे, तो मेरी तबीयत में भी थोड़ा सुधार आ चुका था। मेरे सहयात्रियों ने मुझे सहारा दिया, मेरी चिंता की और मेरी देखभाल की, जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी। मेरे ट्रेन से उतरते समय उन सभी ने मुझसे अलविदा कहा और मुझे शुभकामनाएं दीं। मैंने उनसे वादा किया कि मैं इस यात्रा को हमेशा याद रखूँगी।
इस यात्रा ने मुझे यह सिखाया कि दुनिया में अब भी अच्छे लोग हैं, जो दूसरों की सहायता करने से कभी पीछे नहीं हटते। अजनबियों के बीच भी एक परिवार जैसा माहौल बन सकता है। जब हमारे पास कोई और नहीं होता, तो कभी-कभी अजनबी भी हमारे अपने बन जाते हैं।