जनपदीय साहित्य/बिदेसिया, कठपुतली, सांग(हरियाणा), भांड, ख्याल(राजस्थान), माच(मालवा)

विकिविश्वविद्यालय से

विदेशिया एक लोकनाट्य है।

पाठ ==[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]

पियवा गइलन कलकातावा ए सजनी।

तूरि दिहलन पति-पत्‍नी-नातावा ए सजनी,

किरनि भीतरे परातवा१ ए सजनी। पिया...

गोड़वा में जूता नइखे, सिरवा पर छातावा ए सजनी,

कइसे चलिहन रहतवा ए सजनी। पिया...

सोचत-सोचत बीतत बाटे दिन-रातवा ए सजनी,

कतहूँ लागत नइखे पातावा ए सजनी। पिया...

लिखत ' भिखारी' खोजिकर बही-खातावा ए सजनी,

प्‍यारी सुंदरी के बातवा ए सजनी। पिया...

पिया निपटे नादानवाँ ए सजनी।

हमरा घोंटात नइखे कनवाँ भर ‍अनवाँ ए सजनी,

चाभत होइहें मगही पानवाँ ए सजनी। पिया...

भीतरे रोवत बाड़न तनवाँ में मनवाँ ए सजनी,

छोड़त होइहन मुसुकानवाँ ए सजनी। पिया...

लड़िका नइखन, भइल बाड़न मस्‍तानावाँ ए सजनी,

जेकर हइसन बा जनानावाँ ए सजनी। पिया...

गावत ' भिखारी' हउए कुतुबपुर मकानवाँ ए सजनी,

प्‍यारी सुंदरी के गानाबा ए सजनी। पिया...

करि के गइलन बलमुआँ निरासा

गवना करा के सँइयाँ घरे छोड़ि दिहलन,

गइलन बिदेस हमें करि के बेकासा। निरासा...

सँइयाँ के सुख हम कुछुओ ना जनलीं,

बिचहीं बिधाता बितवलन तमासा। निरासा ....

सतदेव सत राखऽ अरज करति हूँ,

दुख में दया करऽ शंकर जरा सा। निरासा....

कहत ' भिखारी' भगवती सहाय होखऽ,

सँइयाँ मिला के पुरा देहु आसा। निरासा...


करिया ना गोर बाटे, लामा४ नाही हउवन नाटे५,

मझिला६ जवान साम७ सुंदर बटोहिया।

घुठी८ प ले धोती कोर, नि‍कया९ सुगा के ठोर,

सिर पर टोपी, छाती चाकर१० बटोहिया।

पिया के सकल के तूँ मन में नकल लिखऽ,

हुलिया के पुलिया११ बनाइ लऽ बटोहिया।

बारहमासा[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]

आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस,

बरखा१२ में पिया घरे रहितन बटोहिया।

पिया अइतन बुनियाँ१३ में, राखि लिहतन दुनियाँ में,

अखड़ेला१४ अधिका सवनावाँ बटोहिया।

आई जब मास भादो, सभे खेली दही-कादो१५,

कृस्‍न के जनम बीती असहीं बटोहिया।

आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम१६ दिनवाँ के,

लूकवा१७ समानवाँ बुझाला हो बटोहिया।

कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में,

हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया।

अगहन-पूस मासे, दुख कहीं केकरा से?

बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया।

मास आई बाघवा१८ लागी माघवा,

त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया।

पलंग बा सूनवाँ, का कइलीं अयगुनवाँ से,

भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया।

अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी

रँगवा से भँगवा१९ परल हो बटोहिया।

कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली,

पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया।

चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब,

जेठवा दबाई हमें हेठवा२० बटोहिया।

मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल,

कहत ' भिखारी' खोजऽ पिया के बटोहिया।

सहायक सामग्री[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]