रचनात्मक लेखन व्यावहारिक कार्य/22/3417
यह व्यावहारिक कार्य क्रमांक 3417 द्वारा निर्मित किया गया है।
समाचार लेखन
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]- कोलकाता रेप और मर्डर केस: पश्चिम बंगाल में मेडिकल समुदाय की सुरक्षा पर सवाल*
पश्चिम बंगाल के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में 9 अगस्त 2024 को एक महिला पीजी ट्रेनिंग कर रही डॉक्टर का रेप और मर्डर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता के शरीर पर 14 से ज्यादा गंभीर चोटें पाई गईं, जो उसकी मौत से पहले ही लगी थीं। रिपोर्ट में यह भी पुष्टि की गई कि उसकी मौत का कारण दम घुटने से हुई और यह हत्या थी। साथ ही, उसके साथ जबरदस्ती यौन शोषण की भी पुष्टि हुई थी।
इस मामले में पुलिस ने तुरंत एक आरोपी, संजय रॉय, जो कोलकाता पुलिस के सिविक वॉलंटियर थे, को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, जांच की धीमी प्रगति और आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग के चलते यह मामला 13 अगस्त को कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई को सौंप दिया गया।
इस घटना ने पूरे पश्चिम बंगाल और देशभर में मेडिकल समुदाय के बीच आक्रोश पैदा कर दिया। डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों ने जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए और काम बंदी भी की। इसके अलावा, राज्य में मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े हुए हैं। इस हादसे के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाने की घोषणा की है, जैसे कि 'सेफ जोन' और सीसीटीवी के माध्यम से निगरानी वाले क्षेत्र बनाना। यह घटना न केवल राज्य प्रशासन पर सवाल उठा रही है बल्कि मेडिकल समुदाय में सुरक्षा व्यवस्था की कमी को भी उजागर कर रही है।
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[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]कंपनी का नाम- रूह आर्ट
ब्रांड नाम- रूह स्केच पेन
रूह स्केच पेन – हर रंग में रूह बसाए, ख़्वाबों को सच बनाए!
रचनात्मकता को दें नई पहचान – रूह स्केच पेन के साथ।
अब बच्चों की कल्पना को लगाएँ पंख और हर पन्ने पर उकेरें अनोखी कहानियाँ! रूह स्केच पेन लाया है एक ऐसा अनुभव जो हर रंग में एहसास और उत्साह भरता है। हमारे स्केच पेन विशेषताएं और गुणवत्ताएं हैं जो आपके बच्चों की कल्पना को निखारेंगी:
विशेषताएं:
1. गहरे और चमकदार रंग – हमारे पेन के रंग न सिर्फ़ दिखने में सुंदर होते हैं बल्कि उनकी चमक और गहराई लंबे समय तक बनी रहती है।
2. स्मूद और फ्लोविंग इंक – किसी भी कागज पर आसानी से चलने वाली स्मूद इंक, जो हर स्ट्रोक को आसान और खूबसूरत बनाती है।
3. लंबे समय तक टिकने वाले – टिकाऊ और किफायती, हमारे स्केच पेन लंबे समय तक चलने के लिए बनाए गए हैं।
4. नॉन-टॉक्सिक और बच्चों के लिए सुरक्षित – बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए हमारे स्केच पेन नॉन-टॉक्सिक हैं।
5. अलग-अलग शेड्स और वाइब्रेंट कलर्स – रंगों की विशाल रेंज, जो बच्चों को नए-नए एक्स्प्रेशन के अवसर देती है।
रूह स्केच पेन हर चित्र को एक नया जीवन देता है और बच्चों की कलात्मकता को करता है चार चांद। ख़्वाबों को रंगीन बनाएं, हर पन्ने पर रूह की छाप छोड़ें।
रूह स्केच पेन – रंगों में रूह, हर रंग में ख़ास अनुभव!
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साहित्यिक लेखन
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]यात्रा वृतान्त - दिल्ली से जौनपुर
दिल्ली से जौनपुर की यात्रा पर निकलते हुए मैं अपने आप को उत्साह और उत्सुकता से भरा महसूस कर रही थी। मेरी दीदी की शादी का उत्सव, परिवार से मिलने का अवसर, और उस खुशी में शामिल होने का सपना मेरे दिल को रोमांचित कर रहा था। परन्तु किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था, क्योंकि ठीक इस वक्त मेरी तबीयत खराब हो गई। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से चली, मुझे हल्का बुखार और बदन में कमजोरी महसूस होने लगी। उस समय मुझे अहसास हुआ कि आगे की यात्रा शायद मेरे लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। ट्रेन की यात्रा में कई तरह के लोग मिलते हैं - कुछ अपने में मस्त रहते हैं, कुछ दूसरों से बात करने में रुचि रखते हैं। मेरे लिए यह यात्रा भी खास बन गई, जब रास्ते में कुछ अजनबी लोग मेरा सहारा बने, जिन्होंने मेरा ख्याल रखा। मैं थर्ड एसी बोगी में यात्रा कर रही थी और मेरे आसपास बैठे लोग धीरे-धीरे मेरे सहयात्री से मेरे हमदर्द बन गए।
यात्रा की शुरुआत: ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली से प्रस्थान किया, मैंने अपनी सीट पर बैठते ही आराम करने की कोशिश की। मेरे साथ बैठा एक बुजुर्ग व्यक्ति, जिनका नाम मिश्रा जी था, पहले तो चुपचाप बैठकर अपने बैग से किताब निकालकर पढ़ने लगे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं लगातार खिड़की के बाहर देख रही हूँ और चुपचाप बैठी हूँ, तो उन्होंने मुझसे हल्की-फुल्की बातचीत शुरू कर दी। उनकी बातें सुनते ही मुझे कुछ राहत मिली, पर जल्द ही मुझे महसूस हुआ कि मेरी तबीयत बिगड़ रही है। बुखार के साथ-साथ सिरदर्द भी बढ़ गया था और मैं काफी असहज महसूस कर रही थी।
अजनबियों का सहारा: मेरे साथ वाली सीट पर बैठी एक युवा महिला, जो शायद मेरी ही उम्र की थी, उसने मेरी हालत देखी और मुझे पानी की बोतल थमाते हुए पूछा, "आप ठीक हैं ना?" उसकी आवाज़ में अपनापन और चिंता साफ झलक रही थी। मैंने उसे बताया कि मुझे बुखार महसूस हो रहा है और कमजोरी भी। उसने तुरंत ही अपने बैग से एक छोटा सा थर्मामीटर निकालकर मेरा तापमान नापा। जैसे ही उसने देखा कि तापमान अधिक है, उसने अपने बैग से कुछ दवाइयाँ निकालकर मुझे दीं और समझाया कि यह हल्की बुखार के लिए है। मैंने उसे धन्यवाद दिया और उसकी सहायता को सराहा। थोड़ी देर बाद, मिश्रा जी भी मेरे पास आए और उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं कुछ देर लेट जाऊँ। उन्होंने मेरे लिए अपनी जगह थोड़ी खिसका दी, ताकि मुझे थोड़ा अधिक आराम मिल सके। उन्होंने मुझसे कहा कि यदि मुझे और किसी चीज की जरूरत हो तो मैं उन्हें बता सकती हूँ।
ख्याल रखने वाले लोग: जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, मेरी तबीयत में हल्का सुधार हुआ, पर कमजोरी अब भी थी। इस बीच मेरे सामने वाली सीट पर बैठे एक युवा व्यक्ति, जिनका नाम रोहित था, ने भी मुझसे बातचीत शुरू की। उन्होंने मुझे अपने बैग से कुछ फल निकालकर दिए और कहा, "इसे खा लीजिए, इससे आपकी तबीयत बेहतर महसूस होगी।" उनके इस छोटे से प्रयास ने मेरे दिल को छू लिया। इस तरह के अनजान सहयात्रियों का एक-दूसरे का ख्याल रखना वास्तव में एक अद्भुत अनुभव था। रोहित ने मेरे लिए ट्रेन के किचन से गरम पानी मंगवाया और मुझसे कहा कि यदि मुझे चाय या कुछ गरम पीने का मन हो तो मैं उन्हें बताऊँ। उनके इस अपनत्व और सहानुभूति ने मुझे भीतर से बहुत राहत दी। उन्होंने मेरी यात्रा को कुछ सरल बना दिया। इसी बीच, दूसरी सीट पर बैठी एक वृद्ध महिला, जो खुद भी थोड़ी अस्वस्थ लग रही थीं, उन्होंने मुझसे कहा, "बेटी, भगवान सबका ख्याल रखता है। तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।"
रास्ते का खूबसूरत नजारा: इस दौरान ट्रेन खिड़की से बाहर देखने का भी मुझे मौका मिला। बाहरी नज़ारे बेहद सुन्दर थे। घने पेड़, नदी के किनारे, छोटे गाँव, हरियाली से भरे खेत, ये सभी चीजें मेरे मन को शांति दे रही थीं। कभी-कभी प्राकृतिक नजारे भी हमें जीवन के संघर्षों में सहारा देते हैं। उस समय मुझे अहसास हुआ कि यह यात्रा न केवल मेरे लिए बल्कि मेरे आसपास बैठे सभी सहयात्रियों के लिए भी खास थी। उनकी सहायता और अपनापन मेरे दिल को सुकून दे रहे थे।
यात्रा का अंत: जब हम जौनपुर स्टेशन के करीब पहुंचे, तो मेरी तबीयत में भी थोड़ा सुधार आ चुका था। मेरे सहयात्रियों ने मुझे सहारा दिया, मेरी चिंता की और मेरी देखभाल की, जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी। मेरे ट्रेन से उतरते समय उन सभी ने मुझसे अलविदा कहा और मुझे शुभकामनाएं दीं। मैंने उनसे वादा किया कि मैं इस यात्रा को हमेशा याद रखूँगी।
इस यात्रा ने मुझे यह सिखाया कि दुनिया में अब भी अच्छे लोग हैं, जो दूसरों की सहायता करने से कभी पीछे नहीं हटते। अजनबियों के बीच भी एक परिवार जैसा माहौल बन सकता है। जब हमारे पास कोई और नहीं होता, तो कभी-कभी अजनबी भी हमारे अपने बन जाते हैं।