रेडियोधर्मी क्षय

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रेडियोधर्मी क्षय या रेडियोएक्टिव क्षय (Radioactive decay)

किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणुओ से अल्फा(α) या बीटा-कण तथा गामा-किरणे निकलती हैं। इससे रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणु का भार (Atomic Weight) और क्रमांक (Atomic Number) बदल जाते हैं। इस प्रकार प्रारम्भिक रेडियोएक्टिव परमाणु का क्षय हो जाता है तथा किसी नये तत्व के परमाणु का निर्माण होता हैं। इस घटना को रेडियोएक्टिव विघटन या रेडियोएक्टिव क्षय कहा जाता हैं। उदाहरण के लिये, जब यूरेनियम के परमाणु से एका अल्फा-कण निकल जाता है तो वह थोरेनियम के परमाणु में बदल जाता हैं। इसे निम्न समीकरण से समझा जा सकता है:

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यदि नया परमाणु भी रेडियोएक्टिव है, तो उसका भी क्षय हो जाता हैं। तथा एक तीसरा नया परमाणु प्राप्त हो जाता हैं। उदाहरण के लिये, थोरेनियम भी रेडियोएक्टिव हैं। तथा यह एक बीटा-कण का उत्सर्जन करके प्रोटैक्टेनियम में बदल जाता है:

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यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि रेडियोएक्टिव क्षय से पदार्थ कोई स्थाई परमाणु प्राप्त ना कर ले जो रेडियोएक्टिव न हो। उदाहरण के लिये, यूरेनियम का परमाणु क्षय होते होते अन्त में काँच () के परमाणु में बदल जाता हैं। जो सबसे भारी स्थाई तत्व होता हैं। सभी रेडियोएक्टिव तत्वो का क्षय होते होते वह अन्त में काँच के परमाणु में बदल जाते हैं।
वास्तव में रेडियोएक्टिव क्षय एक नाभिकीय प्रक्रिया है अर्थात रेडियोएक्टिव किरर्णे परमाणु के नाभिक से उत्सर्जित होती हैं। इस प्रक्रिय को भौतिक या रासायनिक विधि द्वारा तेज़ या धीमा नहीं किया जा सकता। इसका कारण है कि रासानिक क्रियाए की ऊर्जा १-२ इलेक्ट्रॉन-वोल्ट की कोटि की होती है जबकि नाभिकीय ऊर्जा लाखो इलेक्ट्रॉन-वोल्ट की कोटि की होती हैं। अतः १-२ इलेक्ट्रॉन-वोल्ट का कोई भी परिवर्तन नाभिक को प्रभावित नहीं कर पाता हैं। इसी तरह, साधारण ताप-परिवर्तन भी रेडियोएक्टिव पदार्थ की क्षय दर पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता हैं। वास्तव में यह प्रक्रिय नाभिक का स्वतः प्रवर्वित विघटन (Spontaneous Disintegration) हैं।