न्यायालयिक विज्ञान/न्यायालयिक भाषाविज्ञान
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न्यायालयिक भाषाविज्ञान या न्याय-भाषाविज्ञान (फोरेंसिक भाषाविज्ञान), अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है जो भाषावैज्ञानिक ज्ञान, विधियों तथा अन्तर्दृष्टि का उपयोग करके न्यालयों में अपराध-अन्वेषण में सहायक होता है।
न्यायालयों में काम करने वाले भाषावैज्ञानिक निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में इसका उपयोग करते हैं-
- लिखित कानून की भाषा को समझने में,
- फोरेंसिक तथा न्यायालयीय प्रक्रियाओं में प्रयोग की जाने वाली भाषा को समझने में,
- भाषा साक्ष्य देने में।
अध्ययन के क्षेत्र
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]- आपातकालीन सन्देश
- फिरौती की मांग या अन्य खतरे संचार
- आत्महत्या पत्र
कानूनी कार्यवाही में भाषावैज्ञानिक साक्ष्यों के उपयोग
[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]भाषावैज्ञानिकों ने निम्नलिखित क्षेत्रों में साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं-
- ट्रेडमार्क और अन्य बौद्धिक संपत्ति विवाद
- अर्थ और भाषा-प्रयोग (usage) के विवाद
- लेखक की पहचान करने में
- फोरेंसिक शैलीविज्ञान (साहित्यिक चोरी आदि को पकड़ने में)
- आवाज की पहचान ; इसे फोरेंसिक स्वनविज्ञान भी कहते हैं। उदाहरण के लिये, यह पता लगाने के लिये कि किसी टेप पर अंकित आवाज आरोपी की है या नहीं।
- भाषण का विश्लेषण
- भाषा विश्लेषण (फोरेंसिक बोलीविज्ञान)- शरण चाहने वालों के भाषाई इतिहास अनुरेखण, जिससे शरन चाहने वालों की वास्तविक जन्मस्थान का पता किया जा सके।
- मोबाइल फोन पाठ-बातचीत का पुनर्निर्माण
- फोरेंसिक स्वनविज्ञान (Forensic phonetics)