भाषाविज्ञान/भाषा की परिवर्तनशीलता

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भाषा की परिवर्तनशीलता को भाषा का विकास भी माना जा सकता है। भाषा के संदर्भ में विकास का तात्पर्य ह्रास या गिरावट का विपरीत न होकर किसी भी तरह का परिवर्तन है। इस प्रकार भाषा में किसी भी रूप में घटित परिवर्तन 'भाषा का विकास' ही माना जाना चाहिए। ध्वनि, पद, वाक्य और अर्थ भाषा के चार प्रमुख अंग हैं। भाषा की परिवर्तनशीलता इन्हीं तत्वों में होने वाले परिवर्तन पर आधारित होती है। भाषा की परिवर्तनशीलता को निम्नांकित रूपों में समझा जा सकता है :

  1. ध्वनि-परिवर्तन
  2. पद-परिवर्तन
  3. वाक्य-परिवर्तन
  4. अर्थ-परिवर्तन

भाषा में परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत कुछ उसके देश-काल, वातावरण पर भी निर्भर करती है। इसीलिए भाषा-परिवर्तन के विभिन्न कारक हो सकते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिए इसके कारणों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है : (1) आंतरिक कारण (2) बाह्य कारण।

आंतरिक कारण[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]

प्रयत्न लाघव

इसका अर्थ है कम समय में काम को पूरा करना। इसे मुख-सुख भी कहते हैं। आजकल सभी व्यक्ति यह चाहते हैं कि वह कम से कम समय में अधिक से अधिक काम करें। यदि फोन कहने से ही टेलीफोन का बोध होता है तो फिर टेलीफोन कहने की क्या आवश्यकता है? यू॰एन॰ओ॰, आई॰सी॰एस॰ आदि कहने में प्रयत्न लाधव की प्रवृत्ति काम करती है।

प्रयत्न लाघव के कारण ध्वनि परिवर्तन, वर्ण विपर्यय, समीकरण, विषमीकरण, लोप, स्वरभक्ति आदि देखी जाती है।

जब संयुक्ताक्षर का प्रयोग आसान नहीं लगता तब प्रयोगकर्ता उसमें स्वर या व्यंजन जोड़ देते हैं, जैसे:- स्कूल को इस्कूल, स्थायी को अस्थायी, स्तुति को अस्तुति आदि। इसे आगम कहते हैं। इसका प्रयोग पढ़े-लिखे वर्ग प्रायः नहीं करते हैं। यह आगम की प्रवृत्ति मौखिक में देखी जाती है, लिखित में नहीं।

जब संयुक्ताक्षर का प्रयोग आसान नहीं होता तब उसमें कुछ शब्दों को छोड़ दिया जाता है, जिसे लोप कहते हैं। जैसे ज्येष्ठ को जेठ कहना, दुग्ध को दूध कहना, श्रेष्ठ को सेठ कहना, स्टेशन को टेसन या टीसन कहना आदि।

उच्चारण की सुविधा के लिए कभी-कभी प्रयोगकर्ता ध्वनि का परिवर्तन कर देते हैं, जिसे विकार कहते हैं। जैसे—कृष्ण को कान्हा, मेघ को मेह, हस्त को हाथ कहना इत्यादि।

जब उच्चारण करते समय वर्णों का क्रम उलट जाता है तो इसे वर्ण विपर्यय कहते हैं। यह बोलने की तेजी या भ्रांत श्रवण के कारण होता है। जैसे कागज का काजग, आदमी का आमदी, अमरूद का अमदूरू आदि। गलत सुनने के कारण यह मन में बैठ जाता है, जिससे वर्ण विपर्यय होता है।

जब दो भिन्न ध्वनियाँ आमने-सामने रहती हैं तब सम हो जाती हैं, इसे समीकरण कहते हैं। जैसे—रात्रि का रात, निद्रा का नींद, वार्ता का बात, अग्नि का आग इत्यादि।

बलाघात
भावातिरेक
सादृश्य
उच्चारण भेद
अज्ञान अथवा अपूर्ण अनुकरण
मानसिक स्तर की भिन्नता

बाह्य कारण[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]

भौगोलिक प्रभाव
भाषा के परिवर्तन में भौगोलिक परिवेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जलवायु का प्रभाव मनुष्य के शारीरिक गठन के साथ-साथ उसके स्वभाव और ध्वनि-पद्धति पर भी पड़ता है।
ऐतिहासिक प्रभाव
राजनीतिक प्रभाव
सांस्कृतिक प्रभाव
वैज्ञानिक प्रभाव
साहित्यिक प्रभाव