भाषाविज्ञान/वाक्य के अनिवार्य तत्व

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वाक्य-गठन में दो प्रकार के तत्व निहित होते है : (1) मुख्य तत्व (2) विशेषक तत्व।[1]

मुख्य तत्व भी दो हैं : (1) संज्ञा या उद्देश्य (2) क्रिया या विधेय।

संज्ञा या उद्देश्य
यह वाक्य का सर्वप्रमुख तत्व होता है। सरल भाषा में कह सकते हैं कि जिसके विषय में कुछ कहा जाए उसे उद्देश्य कहते हैं। कर्त्ता की अपेक्षा वाक्य के प्रायः सभी तत्वों को होती है। क्रिया अपने साथ संज्ञा लेकर आती है। देखा जाय तो सर्वनाम और विशेषण भी संज्ञा के ही परिवर्तित रूप हैं। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार भी आता है जैसे–– 'राम का लड़का गया।' इस वाक्य में कर्ता (राम) का विस्तार 'राम का लड़का' है। अतः 'राम का लड़का' भी उद्देश्य होगा।
क्रिया या विधेय
क्रिया या विधेय वाक्य का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है जो उद्देश्य के बारे में सूचना देता है। वैसे महत्व की दृष्टि से देखा जाय तो क्रिया का स्थान सबसे ऊपर है। कर्ता की सार्थकता क्रिया के संचालन में ही है। वाक्य प्रयोग स्वयं एक क्रिया है।

विशेषक तत्वों के संबंध में आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य दर्पण में विचार किया है। अभिहितान्वयवाद के अनुसार पदों के योग से वाक्य की निष्पत्ति होती है। विश्वनाथ के अनुसार वाक्य-गठन के लिए तीन तत्व अपेक्षित हैं। वाक्य का लक्षण बताते हुए उन्होंने योग्यता, आकांक्षा और आसत्ति को इसका विशेषक तत्व माना।

आकांक्षा
आकांक्षा यहाँ अर्थ की अपूर्णता को इंगित करती है। आकांक्षा एक प्रकार की मानसिक स्थति है, जिसका महत्व श्रोता की दृष्टि से है। किसी भी पद या वाक्य को सुनकर श्रोता के मन की जिज्ञासा शांत होनी चाहिए। अगर ऐसा न हो तो वाक्य भावों की पूर्ण अभिव्यक्ति कराने में सक्षम नहीं माना जाएगा। जैसे - केवल 'पानी' सुनकर श्रोता की जिज्ञासा शांत नहीं होगी, बल्कि जब वह पूर्ण वाक्य सुनेगा कि 'पानी ठंडा है' तब उसकी जिज्ञासा शांत होगी।
योग्यता
योग्यता का अर्थ है कि पदों के आपसी अन्वय में बाधा का अभाव और व्याकरण की दृष्टि से सार्थकता। जैसे एक वाक्य हो सकता है - 'बिल्ली पानी पर कूदती है'। इसमें सारे पद अलग-अलग सार्थक हो सकते हैं, पर एक साथ सार्थक वाक्य नहीं बना रहा। इसी तरह कोई कहे कि 'राहुल जाती है' तो यहाँ यह वाक्य व्याकरण की दृष्टि से गलत है।
आसत्ति
आसत्ति का अर्थ है निकटता। वाक्य-गठन में निकटता बहुत जरूरी है क्योंकि एक पद आज कहें और एक कल तो अर्थ की प्रतीति कभी नहीं होगी। इसके साथ ही वाक्य में आए पदों का क्रम भी सही होना चाहिए। कोई कहे कि 'चलो मैं तुम हूँ आता' तो यहाँ सही पदक्रम का अभाव है। सही वाक्य होगा 'तुम चलो मैं आता हूँ।'[2]

संदर्भ[सम्पादन | स्रोत सम्पादित करें]

  1. झा, सीताराम. भाषा विज्ञान तथा हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक विश्लेषण (2015 ed.). पटना: बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी. p. 195. ISBN 978-93-83021-84-0. 
  2. शर्मा, देवेन्द्रनाथ. भाषाविज्ञान की भूमिका. p. 242-244.